Real Life?

How AI Works in Real Life?

How AI Works in Real Life? :- youtube’s को देखते हुए आपकी स्क्रीन पे एक ही तरह की रील्स का आना हो चैट जीपीटी से अपने लिए कंटेंट जनरेट करना हो या इंटरनेट सर्फिंग करते हुए आपकी जरूरत के हिसाब से शॉपिंग के ऑप्शंस का आना हो यह सब एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कमाल है बाय द वे आप देख रहे हैं य्हरेड और हमारी टीम ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कई सारे एस्पेक्ट्स पर  पोस्ट स बनाए हैं 

आज का  पोस्ट  डेडिकेटेड है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के रियल लाइफ एप्लीकेशन पर तो चलिए एक्सप्लोर करते हैं हाउ एआई वर्क्स इन रियल लाइफ सो बेसिकली एआई या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का मतलब होता है मशीनस में इंसानी दिमाग की काबिलियत डालना उन्हें इंसानों की तरह सोचने लायक बनाना 

इसे समझने के लिए सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस काम कैसे करता है 

तो एआई दरअसल कंप्यूटर साइंस का एक फील्ड है जो ह्यूमन ब्रेन को स्टिमुलेटिंग में इंफॉर्मेशन डालना होता है जिसका एक एक डाटा सोर्स होता है फिर एआई सिस्टम उसे प्रोसेस करता है और पहले से ट्रेड किए हुए तरीके से मॉडल्स बनाता है और डाटा के हिसाब से रिजल्ट देता है इंटरेक्ट करता है या ह्यूमन ब्रेन की मिमिक्री करता है एआई में जितना ज्यादा डाटा डाला जाता है वह उतना ही बेहतर बनता जाता है लेकिन सभी एआई सिस्टम्स के लिए बिग डाटा सोर्स की जरूरत नहीं पड़ती है हमारे नए प्लेटफॉर्म्स इफिनिटी स्म जाएगी एक्चुअली बिग डाटा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का मोस्ट इंपॉर्टेंट पार्ट है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को काम करने के लिए चार मेजर प्रोसेस की जरूरत पड़ती है जैसे मशीन लर्निंग न्यूरल नेटवर्क्स डाटा या डेटा प्रोसेसिंग और एल्गोरिथम्स 

चलिए एक-एक करके हम समझते हैं मशीन लर्निंग या एमएल को फाउंडेशन ऑफ एआई कहा जाता है

 इसका सीधा सा मतलब है मशीन को सिखाना कि इंसानी दिमाग काम कैसे करता है इसके लिए मशीन लर्निंग टूल्स में जो भी डाटा डाले जाते हैं उनसे एआई सिस्टम डेटा सेट्स क्रिएट करता है ताकि यह लर्न किया जा सके कि कोई एक स्पेसिफिक टास्क परफॉर्म करने के लिए बिना किसी सॉफ्टवेयर प्रोग्राम के डिसीजंस कैसे लेते हैं और प्रिडिक्शंस कैसे देते हैं 

हालांकि मशीन लर्निंग प्रोसेस में डाटा से एआई सिस्टम की लर्निंग तो हो ही जाती है पर डेटा प्रोसेस करने के लिए और डेटा से काम लायक जानकारी और इंसाइट्स निकालने के लिए सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग और एल्गोरिथम्स की जरूरत पड़ती ही है 

अब यह डाटा इतनी बड़ी क्वांटिटी में होता है कि उसे डेटा का पिरामिड कह सकते हैं इसी डाटा को प्रोसेस करने के लिए मैथमेटिकल मॉडल्स की जरूरत पड़ती है 

इमेज क्लासिफिकेशन इसका एक अच्छा एग्जांपल है 

जैसे कई बार आप किसी वेबसाइट पर जाते हैं तो ढेर सारे इमेजेस में से आपको कहा जाता है कि जिनमें ट्रैफिक लाइट्स दिखाई दे रहे हैं उन्हें सिलेक्ट कीजिए या जिन पिक्चर्स में बिल्लियां बनी हुई है उन्हें आइडेंटिफिकेशन लर्निंग एआई का अगला मेजर कंपोनेंट है न्यूरल नेटवर्क्स जिसे बिल्डिंग ब्लॉक्स ऑफ एआई कहा जाता है दरअसल एआई सिस्टम की मशीन लर्निंग न्यूरल नेटवर्क की वजह से ही होता है जो बायोलॉजिकली इंस्पायर्ड न्यूरल नेटवर्क आर्किटेक्चर होता है जैसे इंसानी दिमाग के न्यूरॉन्स आपस में जुड़े हुए होते हैं उसी तरह न्यूरल नेटवर्क्स में ढेर सारे हिडन लेयर्स होते हैं इन्हीं लेयर्स के बीच से गुजरते हुए डटा प्रोसेसिंग होती है लेयर बाय लेयर जब डाटा गुजरता है तो मशीन की डीप लर्निंग फेज में एंटर करता है और इसी तरह सभी डाटा में कनेक्शन को जोड़ते हुए एआई सिस्टम देता है बेस्ट रिजल्ट यह कुछ इस तरीके से होता है 

पहले इनपुट लेयर डाटा को रिसीव करता है फिर हिडन लेयर डाटा को प्रोसेस करते हैं और आखिर में आउटपुट लेयर से मिलता है रिजल्ट आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए सबसे जरूरी है डेटा डाटा को फ्यूल फॉर एआई सिस्टम भी कहा जाता है क्योंकि एआई मॉडल्स को ट्रेंड करने के लिए बिना डटा सेट्स के कुछ भी करना पॉसिबल नहीं है ऐसे डाटा सेट्स में कई सारे फीचर्स मौजूद होने चाहिए 

  • जैसे डाटा कंप्लीट होना चाहिए 
  • बिना किसी मिसिंग डाटा के एआई सिस्टम को फंक्शन करने के लिए डटा की कंसिस्टेंसी बनी रहनी चाहिए 
  • डेटा एक्यूरेट होना चाहिए 
  • बिना किसी इनकरेक्ट डटा के और साथ ही डेटा अप टू डेट भी होना चाहिए 

बिना किसी आउटडेटेड इंफॉर्मेशन के एआई सिस्टम्स को ट्रेनिंग देने के लिए नॉर्मली तीन तरह के डाटा इनपुट्स देने पड़ते हैं जैसे स्ट्रक्चर्ड अनस्ट्रक्चर्ड और सेमी स्ट्रक्चर्ड डाटा स्ट्रक्चर्ड डेटा है डेट्स एड्रेस क्रेडिट कार्ड नंबर्स नंबर सीरीज और दूसरे स्टैंडर्ड इनपुट मेथड्स स्ट्रक्चर्ड डाटा में डटा हमेशा एक स्टैंडर्ड फॉर्मेट में होता है अनस्ट्रक्चर्ड डेटा में कोई स्पेसिफिक इंफॉर्मेशन मिसिंग होती है जैसे अनस्ट्रक्चर्ड टेक्स्ट इमेजेस और  पोस्ट  में एआई सिस्टम पैटर्स ढूंढने की कोशिश करता है 

इसके लिए एआई सिस्टम एनएलपी या नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग कंप्यूटर विजन और कई दूसरे मेथड्स के जरिए डेटा प्रोसेसिंग करता है और सेम स्ट्रक्चर डेटा तब यूज होता है जब एआई सिस्टम के पास कोई भी प्री डिफाइंड मॉडल नहीं होता है इस तरह के टा जेएसओ एक्सएमएल और सीएसवी फाइल फॉर्मेट को यूज करते हैं यह रास्ता अपनाने से अनस्ट्रक्चर्ड डाटा सोर्स के फायदे मिलते हैं और ट्रेनिंग के लिए अवेलेबल डाटा को स्टोर करना आसान हो जाता है 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आखिरी इंपॉर्टेंट कंपोनेंट के तौर पर प्रॉब्लम सॉल्विंग का काम करते हैं 

एल्गोरिथम्स एल्गोरिथम्स को एआई का बैकबोन कहा जाता है एल्गोरिथम्स एक्चुअली मैथमेटिकल प्रोसीजर्स होते हैं जिसका काम होता है यह बताना कि एआई सिस्टम कैसे सीखेगा डिसीजन मेकिंग कैसे इंप्रूव करेगा और प्रॉब्लम सॉल्विंग को कैसे हैंडल करेगा एल्गोरिदम से ही रॉ डाटा काम लायक जानकारी में कन्वर्ट होते हैं और क्लाइंट्स और कंपनीज के काम आते हैं 

अब जबक आपने यह समझ लिया है कि एक एआई सिस्टम काम कैसे करता है 

तो अब इसके कुछ रियल लाइफ एग्जांपल्स को देख लेते हैं एक्चुअली आज टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट्स के साथ घिरे हुए हम सुबह से लेकर शाम तक एआई फीचर डिवाइस टेक्नोलॉजीज और सिस्टम्स को यूज करते हैं या उनसे हमारी लाइफस्टाइल आसान भी होती है और प्रभावित वि भी नींद खुलते ही हम अपना स्मार्टफोन उठाते हैं और सोशल मीडिया अपडेट्स को चेक करते हैं 

कुछ लोग बायोमेट्रिक अनलॉक से मोबाइल ओपन करते हैं तो कुछ लोग फेस आईडी से अगर आपके पास apple.id मस ये कंपेयर करते हैं कि मोबाइल में जो आपके चेहरे का डाटा स्टोर्ड है वो स्कैन किए जा रहे डाटा से यानी कि आपके चेहरे से मेल खा रहा है या नहीं तब एआई सिस्टम डिसाइड करता है कि फोन को फेस आईडी से खोलना है या नहीं appleid.com देता है 

क्योंकि आपकी सर्फिंग हैबिट्स सर्च रिजल्ट शॉपिंग आपका रूटीन पोस्ट एंड पिक्चर्स वॉइस कमांड लोकेशन आदि चीजों से एआई सिस्टम्स को यह पता होता है कि आप क्या देखना पसंद करते हैं आपकी पास्ट हिस्ट्री से ही आपको फ्रेंड रिकमेंडेशन शॉपिंग एडवाइस फूड चॉइसेज न्यूज़ अपडेट यह सब भेजे जाते हैं इतना ही नहीं आपको फेक न्यूज़ फ्रॉड और साइबर बुलिंग से बचाने के लिए भी एआई की मशीन लर्निंग टेक्नोलॉजी काम करती रहती है 

हर दिन ऑफिस पहुंचते ही हमारा सबसे पहला काम होता है अपना ईमेल चेक करना आई एम श्योर आपके सिस्टम पे ग्रामरली या दूसरे स्पेल चेक टूल्स एक्टिवेट होंगे क्योंकि जब आप ईमेल्स को लिखते हैं तो एरर फ्री मैसेज लिखने में और सही सेंटेंस फॉर्मेशन में यह स्पेल चेक टूल्स ही हमारी मदद करते हैं इसके लिए यह टूल्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग का यूज़ करते हैं साथ ही जब आपके इनबॉक्स में मेल रिसीव होते हैं तो स्पैम मैसेज को फिल्टर करने के लिए भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ही एक्टिवेट रहते हैं और सस्पेक्टेड स्पैम को आइडेंटिफिकेशन इनफैक्ट आपके सिस्टम में इंस्टॉल्ड एंटीवायरस सॉफ्टवेयर भी मशीन लर्निंग मेथड से ही आपके ईमेल अकाउंट को बचाता है हमारे सिस्टम में इंटरनेट कनेक्शन है या नहीं यह चेक करने के लिए भी हम एड्रेस बार में जैसे कोई लॉन्ग ड्यूरेशन का  पोस्ट  देखते हुए 

जब आप काफी वक्त बिता चुके होते हैं तो एआई समझ जाता है कि आप उस  पोस्ट  को जरूर देखेंगे तो उसपे ऐड्स आते ही हैं फॉर एग्जांपल आप किसी कंपनी के बारे में जानने के लिए उसकी वेबसाइट सर्च कर रहे हैं और आप उसकी youtube डिवाइसेसपोर्ट हमारे घर दिन बदन स्मार्ट होते जा रहे हैं वॉइस कमांड वाले डिवाइसेज सेंसर वाले लाइट्स ऑटोमेटिक टेंपरेचर कंट्रोल एंड कूलिंग सिस्टम स्मार्ट रेफ्रिजरेटर्स जो अपने ओनर को लिस्ट बनाकर देते हैं कि फ्रिज में क्या खराब हो रहा है और क्या लाने की जरूरत है यह सभी आईओटी या इंटरनेट ऑफ थिंग्स डिवाइसेज हैं जो कि एआई इनेबल्ड ही होते हैं 

अब अगर शॉपिंग की बात करें तो हमारी जरूरत का ए टू जड सामान बेचने वाला दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाइन रिटेलर है amazonbusiness.in इंटेलिजेंस काम करता रहता है अगर आप amazon लोगों को क्या पसंद है फिर उसी लिहाज से amazon पर रिकमेंडेशंस आने लगते हैं इसके अलावा बहुत से स्पंस ब्रांड्स भी सबसे ऊपर डिस्प्ले होते हैं तो जब भी हम कोई एप्लीकेशन इंस्टॉल करते हैं तो वह हमारा माइक गैलरी कांटेक्ट वगैरह का एक्सेस मांगता है और हम दे भी देते हैं 

अब सपोज आपने कहा कि आपका ईयरफोन खराब हो गया है तो आपकी बातें फोन के माइक से एप्स को चली जाती हैं और वहीं से यह डाटा फिल्टर करके कंपनीज और शॉपिंग वेबसाइट्स को जाता है उसके बाद अगर आपको अपने amazonflex.in करता है तो यह हम आसानी से कह सकते हैं कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी एआई ड्रिवन एआई सपोर्टेड और कई बार चॉइस ऑफ एआई भी होती है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को काम करने के लिए चार मेजर प्रोसेस की जरूरत पड़ती है जिसमें मशीन लर्निंग का जिक्र थोड़ी देर पहले हो चुका है 

अब इसे डिटेल में समझिए मशीनस को सिखाने के लिए बहुत से सेल्फ टीचिंग प्रोग्राम्स होते हैं जो तीन तरह की बेसिक मशीन लर्निंग के ऊपर बेस्ड होती हैं पहला है अनसुपरवाइज्ड लर्निंग दूसरा है सुपरवाइज्ड लर्निंग और तीसरा है रिइंफोर्समेंट लर्निंग तो अब इसको समझाने के लिए हम कोरोना वायरस आउटब्रेक का एग्जांपल दे रहे हैं जब कोविड-19 अपने पीक पे था तब वैक्सीन डेवलप करने के लिए रिसर्चस ने हजारों पेशेंट्स की मेडिकल प्रोफाइल से जुड़े सेट ऑफ डाटा को एक्सेस किया इसके लिए वायरस जिस प्रोटीन से बना था उसकी स्टडी की गई जैसे कि स्पाइक प्रोटींस इसे ही स्टडी करके वैक्सीन डेवलप करने में एआई का इंपॉर्टेंट रोल था एक एआई सिस्टम ऐसे कॉम्प्लिकेटेड स्ट्रक्चर में हजारों लाखों कंपोनेंट्स को स्टडी करके उस एक को ढूंढता है जो ह्यूमन बॉडी में इम्यून डेवलप करने में सक्षम होता है साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए कि समय के साथ वैक्सीन कारगर बनी रहे एआई सिस्टम ऐसे कंपोनेंट्स भी ढूंढता रहता है

 

जिनकी म्यूटेशन या चेंज होने की गुंजाइश नहीं होती है और यह पॉसिबल होता है कंप्यूटेशनल एनालिसिस और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम से एआई सिस्टम से ही वैक्सीन रिसर्चस को डाटा इनसाइट मिलते हैं और निकट भविष्य में वायरस मूटेड होगा या नहीं यह स्टडी करने में आसानी होती है इसके लिए दोबारा डेटा या बिग डाटा सोर्स की जरूरत पड़ती है जो मिलता है हजारों एक्सपेरिमेंटल और रियल वर्ल्ड सोर्सेस से कोविड-19 पैंमिकन ऐसे डाटा की कोई कमी नहीं थी 

क्योंकि पूरी दुनिया कोरोना वायरस की चपेट में थी 2019 में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इनफेक्शियस डिजीज ने यूएसए में सबसे पहले एआई बेस्ड फ्लू वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल किया था उसके बाद फ्लिडर्स यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट ने सिंथेटिक केमिस्ट नाम के एआई टूल से वैक्सीन डेवलप किया जो लाखों करोड़ों सिंथेटिक केमिकल कंपा जनरेट कर सकता था इसके बाद रिसर्चस ने सर्च एल्गोरिथम फॉर लिगस यानी कि समम नाम से एक एआई प्रोग्राम यूज किया जो अरबों खरबों मॉलिक्यूल में से उस एक को आइडेंटिफिकेशन डेवलप करने तक एआई की अनसुपरवाइज्ड लर्निंग सुपरवाइज्ड लर्निंग और रिइंफोर्समेंट लर्निंग ही इंप्लीमेंट होती है

 अब अगर इन तीनों को आपको डिटेल में समझना है तो हमारे नए प्लेटफॉर्म infinity सिंगिंग पैटर्स टेंपो और वॉइस पिच को पहचानकर आपकी आवाज को किसी स्पेसिफिक पर्सनालिटी या किसी सेलेब्रिटी की आवाज में कन्वर्ट कर देते हैं जेनरेटिव एआई टेक्स्ट इमेज  पोस्ट  डिजाइन म्यूजिकल नोट्स या किसी और इनपुट के तौर पे डाटा लेता है और अलग-अलग एआई एल्गोरिथम्स की मदद से बिल्कुल एक्यूरेट कंटेंट या हूबहू नकल जनरेट करता है 

ऐसे रिजल्ट्स में पिक्चर्स ऑडियो वॉइस एसेस सॉल्यूशंस टू प्रॉब्लम्स रियलिस्टिक फेक्स या डीप फेक कंटेंट भी होते हैं चैट जीपीटी google  अवतार एआई माइक्रोसॉफ्ट बिंग का इमेज क्रिएटर यह कुछ जेनरेटिव एआई के मोस्ट पॉपुलर एग्जांपल्स हैं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मॉडर्न विंग के तौर पर जनरेटिंग एआई अपने आप में इतना वास्टप अलग से डॉक्यूमेंट्री बन सकती है  पोस्ट  को समरा इज करते हुए बस इतनी ही उम्मीद रख सकते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे-जैसे सेल्फ लर्नर बनता जा रहा है एक कंप्यूटर साइंटिस्ट के लिए उतना ही मुश्किल होता जाएगा इस चीज को समझना कि आखिर यह सेल्फ टट एल्गोरिथम्स अपने कंक्लूजन पर कैसे पहुंचते हैं जैसे-जैसे इनकी काबिलियत बढ़ती जाएगी और हमारी डेली लाइफ में इनका यूज बढ़ता जाएगा हमारी खुद की सेफ्टी के लिए एआई सिस्टम्स को यह सिखाना जरूरी हो जाएगा कि यह एक दूसरे को यह भी सिखाएं कि मोरली एंड एथिकली कैसे ऑपरेट करना चाहिए तो यह था हाउ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वर्क्स इन रियल लाइफ पढ़ते रहिए  

 

4 thoughts on “How AI Works in Real Life?”

  1. Baddiehubs You’re so awesome! I don’t believe I have read a single thing like that before. So great to find someone with some original thoughts on this topic. Really.. thank you for starting this up. This website is something that is needed on the internet, someone with a little originality!

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