सोलर सस्ता है तो फिर हम इस्तेमाल क्यों नहीं करते Solar power is ready to shine
शायद आपको हैरानी हो लेकिन सूरज से मिलने वाली स्वच्छ ऊर्जा यानि सोलर एनर्जी अब बिजली बनाने का सबसे सस्ता तरीका बन गई है कोई लिए भी सस्ता फिर भी दुनिया के सिर्फ तीन प्रतिशत बिजली ही सौर ऊर्जा से बनाई जा रही है हम इसका ज्यादा इस्तेमाल क्यों नहीं करते और सौर ऊर्जा इतनी सस्ती कैसे हो गई और इस सबका बत्तखों से क्या लेना-देना है
चलिए पता करते हैं लुट सबसे पहले देखते हैं कि सोलर एनर्जी के दाम कितने कम हुए हैं ताकत है जब मैंने 2005 में सोलर पैनल्स के तौर पर काम शुरू किया तो मुझे लगा कि सोलर बहुत ही महंगा है जेल इंचेस सोलर एनर्जी एक्सपर्ट यह पहले आप एक सोलर पैनल के लिए प्रति वोट डाल चुके थे अब सिर्फ बीसीडी न होता है यह सब 15 साल में हुआ है थोड़ा और पीछे जाएंगे तो दामों में और बड़ी गिरावट दिखेगी लेकिन यह सब हुआ कैसे प्रश्नों कहानी लंबी है पर अभिश्वसन है ग्रेगरी ने अमित में इस बारे में एक किताब भी लिखी है जो यह किसी एक देश ने नहीं किया है
कई देशों के सहयोग से यह संभव हुआ शुरुआत अमेरिका ने की जिसने की टेक्नोलॉजी बनाएगी फिर कौन से बना जो सोलर सेल आज इस्तेमाल होता है उसका आविष्कार 1954 में अमरीका में हुआ तब इसका उपयोग बस अंतरिक्ष उद्योग में होता था और यह बहुत में हुआ था
लेकिन टेक्नोलॉजी एडवांस होती गई तो दाम गिरते गए थे दूसरे जर्मनी ने बाजार तैयार किया जर्मनी ने 2000 में अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए एक कानून पारित किया यह बड़ा कदम था क्योंकि इसमें विंड और सोलर जैसे स्रोतों से ऊर्जा बनाने की एक निश्चित कीमत तय कर दी गई इसके बाद आम लोग और कंपनियां सोलर पैनल लगाने लगे तो
तीसरा चीन ने सस्ता किया इसके बाद चीन में बड़े पैमाने पर सोलर सेल्स बनाने शुरू कर दिए पति ने इसके लिए इतने बड़े पैमाने पर उद्योग खड़ा कर दिया कि पश्चिमी देश उसका मुकाबला ही नहीं कर पाएगा चीन 20 साल पहले सोलर एनर्जी के क्षेत्र में कहीं नहीं था और आज वह सोलर पैनलों का सबसे बड़ा निर्माता है दुनिया के 70 फ़ीसदी सोलर पैनल सैम चीज नहीं बन रहे हैं कि इस तरह सौर ऊर्जा पर आने वाली लागत कम हुई और अभी यह फायदे का सौदा साबित हो रहा है
सोलर अगर इतना ही अच्छा है तो हम इसी से सारी बिजली क्यों नहीं बनाते प्रदूषण फैलाने वाले पावर प्लांटों को बंद क्यों नहीं कर देते देखिए
सोलर एनर्जी के साथ एक बड़ी समस्या है यह तभी काम करती है जब सूरज चमक रहा हो जब बादल छाए हों या अंधेरा हो तो बेहतरीन सोलर सेल भी कुछ काम नहीं आते यही सबसे बड़ी समस्या है क्योंकि तभी तो हमें बिजली की सबसे ज्यादा जरूरत होती है
चलिए देखते हैं कि हम ऊर्जा का इस्तेमाल कैसे करते हैं
सुबह-सुबह उठकर जब हम तैयार होते हैं तो हमें बिजली की जरूरत पड़ती है बैक कर्व्स चार्ट बताता है कि हमें दिन भर में कोई ले और गैस जैसे पारंपरिक स्रोतों से मिलने वाली कितनी ऊर्जा चाहिए सुबह-सुबह बहुत ऊर्जा चाहिए फिर उसकी मांग स्थिर हो जाती है शाम को लोग जब घर लौटते हैं तो ऊर्जा की खपत बढ़ जाती है और रात में फिर घट जाती है आपको अंदाजा हो गया होगा कि से दो तरुण चार्ट क्यों कहते हैं क्योंकि यह बत्तख की तरह दिखता है वैसे कैलिफोर्निया जैसी जगहों पर जहां बहुत सारे सोलर पैनल है वहां का रुख बदल जाता है
सुबह में यह वैसा ही रहता है सूरज उगता है तो सौर ऊर्जा बनने लगती है फिर पारंपरिक स्रोतों से मिलने वाली बिजली की मांग घट जाती है सूरज छिपने तक ऐसा ही रहता है अंधेरा होने पर पारंपरिक बिजली की मांग बहुत बढ़ जाती है पहले कर से भी ज्यादा इसकी दो समस्या हैं
- पहली समस्या पारंपरिक पावर प्लांट फौरन उर्जा की जरूरत पूरी नहीं कर सकते हैं कुछ लिखना जा दोपहर में उससे कहीं ज्यादा बिजली बनती है जितनी चाहिए
- इसे दूसरी समस्या पैदा होती है आप ग्रिड में एक निश्चित मात्रा में ही गुर्जर रख सकते हैं बहुत ज्यादा बिजली होगी तो उसे छोड़ना ही पड़ेगा स्टोरेज की समस्या को देखते हुए सोलर से बहुत ज्यादा बिजली बनाना संभव नहीं है
लेकिन अब इसका भी समाधान है का समाधान है लिथियम-आयन बैटरी
लिथियम-आयन बैटरी जो आपके पास ही है लिथियम आयन बैटरियों उससे भी बेहतर और सस्ती हुई है जितना कुछ साल पहले सोचा जाता था वह सब कुछ घंटे इस्तेमाल होने लायक बिजली को टोन कर सकती हैं जिसे जरूरत के मुताबिक दूसरी जगह भेजा जा सकता है तो सोलर के साथ जो पहले स्टोरेज की समस्या होती थी वह अब नहीं रही वैसे कभी-कभी हमें लंबे समय तक स्टोरेज की जरूरत पड़ती है खासकर उन जगहों पर जहां ज्यादा धूप नहीं निकलती कुछ कंपनियों के पास इसके भी समाधान है
चलिए देखते हैं एक अलग तरह की बैटरी जिसे किलो बैटरी कहते हैं
यह सेल के बाहर आवेश को अलग करती है इसमें ऊर्जा भी ज्यादा स्टोर होती हैं और ज्यादा लंबे समय तक रहती है लेकिन यह अभी काफी महंगी है फिर आता है पर हाइड्रो स्टोरेज इसके लिए आपको दो ढोल चाहिए जिनमें से एक पहाड़ी पर होनी चाहिए दिन में आप सोलर एनर्जी से पानी नीचे वाली धीर से दो वाली में पहचानते हैं और जब आपको रात में भी ली चाहिए तो पानी को नीचे भेजते हैं और टरबाइन से बिजली बनाते हैं लेकिन इसके लिए आपको झीलें ढूंढूं होंगी वह भी पहाड़ी पर एक स्विस कंपनी ऐसे टावर पर काम कर रही है जिसमें सोलर एनर्जी से बिल्डिंग ब्लॉक्स को ऊपर ले जाया जाता है और फिर जब उन्हें नीचे लाते हैं तो उनसे एनर्जी निकलती है लेकिन इसके लिए बहुत जगह चाहिए
इसके अलावा हाइड्रोजन बनाने के लिए भी सोलर इस्तेमाल करने का विकल्प है और फिर इस हाइड्रोजन से बहुत सारे काम हो सकते हैं लेकिन यह प्रक्रिया खासी महंगी है तो और ऑप्शन टेंस आम इससे कई विकल्प हैं
लेकिन लिथियम-आयन बैटरी बहुत फ्लैक्सिबल और किफायती साबित हो रही है
इसीलिए दूसरे विकल्पों का टिकना मुश्किल होगा लेकिन उनके अपने फायदे हैं जैसे कि उन्हें ज्यादा समय तक ऊर्जा रह सकती है और यह बात कई जगहों पर बहुत अहम हो सकती है इसमें ऑप्शन तो फिर अब सौर ऊर्जा का आगे भविष्य क्या है अगर इसका दायरा बढ़ेगा अनुमान है कि अगर कोई और नई नीति कि भी बनाई गई तो भी 2050 तक दुनिया की 23 वीं सदी बिजली सोलर से आएगी मेरी उम्मीद इससे भी ज्यादा है नोटिस मुझे हैरानी नहीं होगी अगर 2030 तक दुनिया को अपनी जरूरत की बिजली का एक बड़ा हिस्सा है कि सौर ऊर्जा ने लंबा सफर तय किया है और अब टेक्नोलॉजी इतनी आगे बढ़ गई है तो इसके चमकने का समय आ गया है
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