HEATWAVES : भारतीय शहर गर्मी से मर रहे हैं  

HEATWAVES : भारतीय शहर गर्मी से मर रहे हैं  

HEATWAVES : भारतीय शहर गर्मी से मर रहे हैं  

देश जल रहा है लिटरली ये इमेज देखिए हीट वेव्स की वजह से सैटेलाइट से देखा जाए तो भारत कुछ ऐसा दिखता है यानी राइट नाउ एट दिस वेरी मोमेंट सऊदी अरेबिया ओमान सूडान और अफ्रीका के कई सारे देशों से ज्यादा गर्म भारत है 

हीट वेव एक नेशनल इमरजेंसी है और अभी तो गर्मी बस शुरू ही हो रही है यह साल भारत का हॉटेस्ट समर होने वाला है आगे जाकर म के महीने में क्या होगा हम इमेजिन भी नहीं कर सकते लेकिन ये पोस्ट सिर्फ प्रॉब्लम्स पर बात करने के लिए नहीं है पोस्ट के एंड में हम सलूशन भी डिस्कस करेंगे जिसमें आपका मेरा और सरकार का भी एक्टिव पार्टिसिपेशन जरूरी है 

हम हमारे हर व्यूअर को सलूशन का हिस्सा बनाना चाहते हैं इसीलिए अगर आपको हमारा काम अच्छा लगता है तो प्लीज चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए आप में से सिर्फ 30%  लोगों ने ही चैनल को सब्सक्राइब किया हुआ है अगर किसी वजह से आप उस लाल सब्सक्राइब बटन पर क्लिक करना भूल गए हैं तो अभी कर दीजिए क्योंकि यह आपके लिए तो फ्री है लेकिन इससे हमारी बहुत हेल्प होती है 

चैप्टर वन गर्मी मैं महंगी पड़ती है 

सूरज की गर्मी भारत को गरीब बनाती है बात सुनने में अजीब लगती जरूर है बट लिसन टू मी आज भी भारत का 75 पर पॉपुलेशन यानी चार में से तीन लोग फिजिकल लेबर रिलेटेड काम करते हैं खेती करते हैं बिल्डिंग्स बनाते हैं रास्ते के बगल में स्टॉल लगाकर कुछ बेचते हैं और यह काम होता कब है दोपहर के समय यानी तपती गर्मी में ऐसे ही अन ऑर्गेनाइज सेक्टर पर 75 भारत निर्भर है जो हमारे जीडीपी का व थर्ड कंट्रीब्यूट करता है गर्मी के वजह से प्रोडक्टिविटी 5% से 10 % कम होती है डिहाइड्रेशन होता है जल्दी थकान महसूस होती है तो अगर गर्मी की वजह से भारत काम ही नहीं कर पाएगा तो आगे कैसे बढ़ पाएगा आप और हम प्रिविलेज्ड हैं ऑफिस में हम इस गर्मी से सेफ होते हैं तो हमारा गर्मी से सामना सिर्फ ट्रेवल करते समय ही होता है 

मैकेंस का एक रिपोर्ट कहता है कि भारत में 20 करोड़ लोग हीट वेव का शिकार हो सकते हैं आंकड़े कहते हैं कि 2030 तक इस प्रोडक्टिविटी लॉस का जीडीपी पर इंपैक्ट 2.5 से 4.5 तक होगा दैट इज 126 बिलियन डलर एव्री ईयर हमारी सेंट्रल गवर्नमेंट जीडीपी का कुछ 2 पर हर साल एजुकेशन पर स्पेंड करती है 

यानी हीट वेव से होने वाला अगर सारा नुकसान हम बचा पाए और वो सारे पैसे एजुकेशन के लिए एलोकेट कर पाए तो हर साल हमारा एजुकेशन बजट डबल हो सकता है यानी इकॉनमी को होने वाला नुकसान अवॉइड करके वही पैसा अच्छे कामों के लिए यूज हो सकता है अब क्या आपको लगता है कि यह सारी बातें हमारे लीडर्स नहीं जानते ऑफकोर्स जानते हैं लेकिन एनवायरमेंट हमारी प्रायोरिटी बने तो कोई बात बने यानी हम जहां भारत को 2047 तक डेवलप होने के सपने देख रहे हैं वो सपने सिर्फ सपने रह जाएंगे क्लाइमेट चेंज एक रियलिटी है 

सोनम वांगचुक सर लद्दाख में बैठ के पिछले दो महीनों से चिल्ला चिल्लाकर सबको वही बता रहे हैं लेकिन उनकी प्रोटेस्ट को एड्रेस करने के बजाय सेक्शन 144 लगाकर उनकी आवाज को दबाया जा रहा है यह हमारे देश की एक सैड रियलिटी है जिसे अनदेखा करना हमारी सबसे बड़ी भूल होगी क्योंकि क्लाइमेट काफी अन बायस होता है उसे फर्क नहीं पड़ता कि आप लेफ्ट विंग हैं या राइट विंग फर्क नहीं पड़ता कि आप किस पॉलिटिकल पार्टी को वोट देते हैं या फिर कौन सा रिलीजन फॉलो करते हैं 

क्लाइमेट सिर्फ फैक्ट देखता है और फैक्ट यही है कि भारत दुनिया का थर्ड मोस्ट वल्नरेबल देश है यानी क्लाइमेट चेंज का इंपैक्ट जिन देशों पर सबसे ज्यादा होगा उस लिस्ट में तीसरा नंबर भारत का है किसी भी रैंक से ज्यादा ये रैंक हमारे लिए जरूरी होना चाहिए बट वेट एसी है ना हम सोचते हैं कि गर्मी है तो क्या हुआ एसी चला देंगे 

लेकिन एसी से गर्मी कम नहीं होती एसी से गर्मी बढ़ती है क्यों क्योंकि एसी इलेक्ट्रिसिटी पर चलता है और भारत में ज्यादातर इलेक्ट्रिसिटी थर्मल पावर प्लांट से यानी कोल से आती है जो जलाकर हम हवा में कार्बन रिलीज भी करते हैं और पोल्यूशन भी बढ़ाते हैं 

इंटरनेशनल एनर्जी एसोसिएशन का डाटा देखते हैं 

उनके वर्ल्ड एनर्जी रिपोर्ट 2023 में भारत के एसी यूज के बारे में कई इंटरेस्टिंग इंसाइट्स हैं भारत में आज 100 में से 24 घरों में एसी है अमेरिका में 100 में से 85 घरों में एसी है और चाइना के अर्बन एरियाज में ऑलमोस्ट हर घर में एसी होता है 2050 तक एसी यूनिट्स इन यूज नौ गुना बढ़ जाएंगे इनफैक्ट ये रिपोर्ट कहता है कि 2050 तक हमारा एसी से रिलेटेड पावर डिमांड पूरे अफ्रीका के कॉन्टिनेंट से भी ज्यादा होगा व्हिच इज क्रेजी एसी चलाना शॉर्ट टर्म में तो एक सलूशन है  लेकिन लॉन्ग टर्म में एक प्रॉब्लम है जो हमें महंगा पड़ सकता है 

चैप्टर टू हीट वेव्स होती क्या है 

ओके तो हमने हीट वेव्स का हमारी इकॉनमी पर होने वाला इंपैक्ट समझा लेकिन हीट वेव एक नेशनल इमरजेंसी क्यों होनी चाहिए एक्चुअली ये हीट वेव होती क्या है क्या आप कभी सोना में बैठे हो या फिर किसी ऐसे कमरे में जहां बाहर से हवा आती जाती नहीं है पसीने छूटने लगते हैं हीट वेव्स तब फॉर्म होते हैं जब एक एरिया के एटमॉस्फियर में हाई प्रेशर सिचुएशन क्रिएट होता है ऊपर के एटमॉस्फियर में हाई प्रेशर होने की वजह से विंड्स ग्राउंड की तरफ ट्रैप हो जाते हैं और ग्राउंड जो हीट रिफ्लेक्ट करता है वो हीट इस एरिया में ट्रैप हो जाता है और उस एरिया से निकल नहीं पाता 

इस हाई प्रेशर एरिया में विंड्स आ नहीं पाते और जो हीट है वो भी ट्रैप हो जाती है काइंड ऑफ लाइक अ प्रेशर कुकर हीट वेव गर्मी सर्दी या बारिश की तरह कोई सीजन नहीं है हीट वेव एक कंडीशन है हीट वेव तभी डिक्लेयर होता है जब टेंपरेचर एक पर्टिकुलर लिमिट के ऊपर जाए एज पर इंडियन मीटरोलॉजी डिपार्टमेंट प्लेन एरिया में 5 डिग्रीज अबब मेन टेंपरेचर और 40° से ज्यादा टेंपरेचर हिली एरियाज में 5 डिग्रीज अबोव मेन टेंपरेचर या फिर 35° से ज्यादा टेंपरेचर कोस्टल एरिया में 5° अव मेन टेंपरेचर या फिर 37 डिग्रीज टेंपरेचर इकॉनमी का लोगों की प्रोडक्टिविटी से कनेक्शन होता है 

हैप्पीनेस से कनेक्शन होता है और लोगों का हैप्पीनेस का वहां के टेंपरेचर से लेट मी गिव यू एन एग्जांपल पिछले महीने हम फिनलैंड में थे जो पिछले सात सालों से बैक टू बैक दुनिया की हैप्पी कंट्री का खिताब जीती है बात सिर्फ फिनलैंड की नहीं सारे नॉर्डिक कंट्रीज जो कूल कंट्रीज हैं वो हैप्पीनेस इंडेक्स में भी टॉप पर आते हैं क्यों क्योंकि हमने ठंड से बचने के इनोवेटिव तरीके तो ढूंढने हैं हम जैकेट्स पहन सकते हैं छोटी सी फायर पलेस बना सकते हैं अपने घरों को इंसुलेट कर सकते हैं ताकि बाहर की ठंडी अंदर ना आए 

लेकिन हमारे शहरों ने गर्मी के कोई सलूशन ढूंढे ही नहीं है जब हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत का नाम 146 में से 126 रैंक पर आया तब हम सबको बुरा लगा कुछ लोगों ने यह हैप्पीनेस इंडेक्स कितनी वैलिड है ऐसे सवाल उठाए 

लेकिन हमें एक स्टेप आगे जाना होगा सोचना होगा कि कैसे बदलते हुए 

एनवायरमेंट का असर हमारे मूड पर हमारी प्रोडक्टिविटी पर और हमारे इकॉनमी पर भी हो रहा है ये सारी बातें कनेक्टेड है यही सच है एक स्टडी के अनुसार मॉडर्न बिल्डिंग्स के टेंपरेचर पुराने घरों से 5 से 7 डिग्री ज्यादा होते हैं बड़े-बड़े शहरों में आपने ऐसे घर देखे होंगे जहां बहुत सारे लोग एक छत तक अफोर्ड नहीं कर सकते तो फिर वो मेटल का रूफ लगाता है 

मुंबई के 37 पर घर ऐसे ही हैं मुंबई का मैप देखें तो आप साफ-साफ देख सकते हैं कि आर फॉरेस्ट के अराउंड टेंपरेचर सबसे कम होता है और जहां पेड़ कम है वहां टेंपरेचर बढ़ता है इसे अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट कहते हैं यह चार्ट देखिए मुंबई के हर वॉर्ड को एनालाइज किया गया और उससे साफ-साफ दिखता है कि जिस वॉर्ड में वेजिटेशन कम है वहां पर टेंपरेचर्स हाई हैं 

चैप्टर थ्री सॉल्यूशंस 

अगर भारत में बढ़ते टेंपरेचर को मात देनी है तो हमें ब्लाइंड वेस्ट स्न आइडियाज को कॉपी करना बंद करना होगा हम वेस्ट से जो नहीं सीखना चाहिए वही परफेक्टली सीखते हैं फॉर एग्जांपल न्यूयॉर्क कीय स्काईलाइन देखिए यहां आपको दिखती है कई सारी कांच की बिल्डिंग्स ऊंची ऊंची कांच की इमारतों को देखकर लगता है कॉरपोरेट सक्सेस चाहिए तो कांच की बिल्डिंग में ऑफिस होना जरूरी है और उसी आइडिया को ब्लाइंड कॉपी करके भारत में भी ऐसी कांच की बिल्डिंग्स बनने लगी यह कितना स्टुपिड है पता है

 न्यूयॉर्क में समर्स में एवरेज टप होता है 27 डिग्री सेल्सियस और मुंबई में 35 डिग्री यानी मुंबई गर्म भी है ज्यादा ह्यूमिड भी है और ट्रॉपिकल भी है और न्यूयॉर्क में सर्दियों में बर्फ भी गिरती है लेकिन मुंबई में कांच की बिल्डिंग्स होने से क्या फर्क पड़ता है एक ही समय दो-दो सूरज बनते हैं ये देखिए दोपहर के 4 बजे सूरज तो यहां है लेकिन यहां भी है इस ग्लास की बिल्डिंग से सनलाइट रिफ्लेक्ट होकर डबल सन इफेक्ट मिल रहा है 

यानी डबल लाइट और डबल हीट भी अब मुंबई जैसे शहरों में जहां सिर्फ दो ही सीजंस होते हैं गर्मी और बहुत ज्यादा गर्मी सोचिए क्या यह बेवकूफी नहीं है उस कांच की बिल्डिंग में काम करने वाले लोग ट्रेवल करते समय भी इस फेनोमेन को एक्सपीरियंस करते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता क्योंकि हमने वेस्ट को कॉपी करना एक फैशन बना दिया है और हम किसे कॉपी कर रहे हैं उस सोसाइटी को जो फास्ट फूड के नाम पर हमें महीनों पहले बना हुआ बास ही खाना खाने के लिए कहते हैं उस सोसाइटी को जो केले को भी प्लास्टिक में रैप करते हैं ताकि अंदर का फल गंदा ना हो कितना अच्छा होता ना कि अगर केले को भी एक नेचुरली कवर होता जिससे वह अंदर भी डैमेज ना हो और फ्रेश रहे वो जो नेचर की इतनी इज्जत करते हैं कि पेड़ों को काटकर उनसे पेपर बनाकर अपनी टट्टी साफ करते हैं 

जहां पानी सफिशिएंट है इजली अवेलेबल है वी हैव अ लॉट टू लर्न फ्रॉम द वेस्ट एंड मच मोर टू अनलर्न अगर कॉपी करना ही है तो हम सिंगापुर को क्यों कॉपी नहीं कर सकते जिनका क्लाइमेट हमसे मेल खाता है जिनके पास भी स्पेस का एक प्रॉब्लम है लेकिन फिर भी बिल्डिंग्स कुछ ऐसे दिखते हैं वर्टिकल गार्डेंस होते हैं जिनसे कम से कम स्पेस का मैक्सिमम इस्तेमाल होता है ऐसे माइंड सेट चेंज की हमें जरूरत है हमारे गुरुकुल सिस्टम में बच्चे बच्चे को सिखाया जाता था कि अपनी लाइफ में एक पीपल का पेड़ एक इमली का पेड़ तीन आमला के पेड़ और पांच आम लगाएं एक आम का पेड़ अपने पूरे लाइफ टाइम में 2701 टन ऑक्सीजन प्रोड्यूस करता है और 81 टन कार्बन अब्जॉर्ब भी करता है यह उतना ही कार्बन है जो 5 एसी 1000 घंटों के लिए चालू रखने पर इमिट होता है समर्स में आम खाते तो सब है 

लेकिन आम लगाते कितने हैं नेचर से जो हम लेते हैं उसे वापस ही नहीं देते इसीलिए हमने पिछले तीन सालों से शुभजीवन से आम की गुठलियों कलेक्ट की और उनसे पेड़ लगाए आम का पेड़ लगाने में पहली साल हमने सिर्फ 11000 पेड़ लगाए फिर मेहनत किया आप लोगों का सपोर्ट आया 24000 पेड़ पहुंच गए और पिछले साल आपके हेल्प से 65000 पेड़ हम लोग लगा चुके हैं ईशा वास मदम सर्वम यत किंच जग क्याम जगत तेन त्यक्तेन भूज मा गध कस्य स्वी धनमंडी  रिसोर्सेस को पानी को फलों को फूलों को उधार लेते हैं बोरो करते हैं हम उनके मालिक नहीं है 

यानी हमें यह सब लौटाना है कर्जा चुकाना है यह सारी बातें जो स्कूल में ही हर बच्चे को सिखानी चाहिए व बातें हम सिखाना भूल रहे हैं हमें सिखाया जाता था कि एक फूल तोड़ने से पहले हमें हाथ जोड़कर पेड़ को थैंक यू कहना चाहिए तो यह संस्कार हम आज क्यों भूल रहे हैं 

 

 

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