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Reality of Indian Education System | भारतीय एजुकेशन सिस्टम की हकीकत
Indian Education System :- अगर आपसे पूछा जाए कि आप बकला खाना पसंद करेंगे या मोमोज तो आप क्या चूज करेंगे ओबवियस सी बात है कि हम में से ज्यादातर लोग मोमोस को ही चूज करेंगे क्योंकि यह नाम हमने सुना हुआ है और बहुत बार खाया भी है नो डाउट टेस्टी भी होता है तो यही चीज एगजैक्टली हमारे करियर के साथ भी होती है गवर्नमेंट जॉब या प्राइवेट जॉब तो शायद 100% लोग कहेंगे गवर्नमेंट जॉब क्योंकि इसमें सिक्योरिटी है सेफ्टी है और वो भी जिंदगी भर की एक्चुअली ना ह्यूमन ब्रेन हमेशा ओबवियस और कॉमन चीजों को प्रेफर करना पसंद करता है
अब इस आर्टिकल को ही देख लीजिए एट सबकॉन्शियस मिस्टेक्स आवर ब्रेस मेक एवरी डे और इसका पहला ही पॉइंट है कि हम वैसी ही जानकारियां बटोर हैं जिसपे हमारा गहरा विश्वास होता है हम सुनते आते हैं कि गवर्नमेंट जॉब मिल जाए तो जिंदगी आसान बन जाएगी जिंदगी में सब ठीक हो जाएगा और हम उसी पर फोकस करके बाकी सभी करियर ऑप्शंस को ब्लर कर देते हैं और काफी हद तक ऐसी सोच हमें हमारे एजुकेशन सिस्टम से मिलती है
हमें सिखाया ही यही जाता है कि डॉक्टर या इंजीनियर बनो आईआईटी की तैयारी करो या गवर्नमेंट जॉब के लिए तैयारी करो जी जान से लेकिन जरा इस आर्टिकल पर ध्यान दीजिए एप्लीकेशन 22 करोड़ और 8 साल में केंद्र सरकार ने दी सिर्फ 72000 लोगों को सरकारी नौकरी
अब यह तो सिर्फ सेंट्रल गवर्नमेंट का डाटा है देश भर में स्टेट गवर्नमेंट्स का भी लगभग यही हाल है सरकारी नौकरियां हर कहीं घटती जा रही हैं और कंपटीशन बहुत ज्यादा है ऊपर से पेपर लीगस के चलते एग्जाम कैंसिल हो रहे हैं और स्टूडेंट्स के साल दर साल बर्बाद हो रहे हैं
पंजाब हरियाणा वेस्ट बंगाल बिहार हर कहीं पेपर लीग के चलते हर साल लाखों स्टूडेंट्स का फ्यूचर दांव पे लग जाता है लेकिन हमारे देश के एजुकेशन सिस्टम में आज भी ट्रेडिशनल चीजें पढ़ाई जा रही है एक कॉलेज स्टूडेंट अपने सिलेबस में वही हिस्ट्री पढ़ के डिग्री लेता है जो वह स्कूल में पढ़ चुका है
देश के दूर-दराज के गांवों में आज भी टीचर बनना सबसे प्रेस्टीजियस जॉब माना जाता है पर कहीं कोई नॉन ट्रेडिशनल जॉब या बिजनेस की बात ही नहीं करता इसलिए ऐसी हेडलाइंस अक्सर पढ़ने को मिल जाती हैं नाम की डिग्रियों के चलते इंडिया में बढ़ रही है बेरोजगारी
अब हम भले ही गूगल पेजाई और माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला का एग्जांपल देते हैं पर ऐसी सक्सेसफुल कहानियां तो गिनी चुनी है और यह बात भी तो सच है कि उन्हें जो मुकाम मिला हुआ है वह इंडिया में रहते हुए कभी पॉसिबल नहीं हो पाता इंडियन एजुकेशन इस्ट्री 2025 तक 225 बिलियन डॉलर की हो जाएगी
लेकिन इंडिया अपनी जीडीपी का सिर्फ 2.9 पर ही एजुकेशन बजट पर खर्च करता है पर यूएसए अपनी जीडीपी का 6 पर एजुकेशन सिस्टम पर खर्च करता है
लेकिन क्वालिटी एजुकेशन पर ध्यान बहुत ही कम है इसलिए डिग्री और सो कॉल्ड क्वालिफिकेशन के बावजूद भी हमें काम नहीं मिल पा रहा है या हम मल्टीनेशनल कंपनीज के रिक्रूटमेंट पैरामीटर्स में फिट नहीं बैठ पा रहे हैं
सीएजी की रिपोर्ट की माने तो गवर्नमेंट स्कूल्स खराब इंफ्रास्ट्रक्चर और इंसफिशिएंट क्लासरूम से जूझ रहे हैं अब अगर कोई पेरेंट्स चाहे कि वह अपने बच्चों को बेहतर एजुकेशन देने के लिए प्राइवेट स्कूल में डाले तो आजकल प्राइवेट स्कूल अफोर्ड करना भी ना बहुत ही मुश्किल हो गया है
क्योंकि साल 2020 से ही यह ट्रेंड देखने को मिला है कि पेरेंट्स अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकालकर गवर्नमेंट स्कूल्स में भेज रहे हैं
साल 2021 में 4 मिलियन यानी लगभग 40 लाख बच्चे प्राइवेट स्कूल से गवर्नमेंट स्कूल्स में शिफ्ट हो गए यह स्कूल जाने वाले कुल बच्चों की संख्या का 4 पर से भी ज्यादा था
इसकी सबसे बड़ी वजह है प्राइवेट स्कूल्स में फीस का बढ़ना और यह दिल्ली कोलकाता मुंबई लगभग सभी शहरों की सेम कहानी है बात यहीं पर खत्म नहीं होती स्कूल फीस भरने के बाद भी इंडियन फैमिलीज सालाना लगभग 16000 आफ्टर स्कूल एजुकेशन जैसे पर्सनल ट्यूटर्स ट्यूशन क्लासेस और कोचिंग क्लासेस पर खर्च करते हैं
उसके बाद भी आर्ट्स एंड ड्राइंग क्लास स्पोर्ट्स एकेडमिक्स म्यूजिक क्लासेस डांस क्लासेस कंप्यूटर क्लास या दूसरी हॉबीज से जुड़ी चीजों का खर्च भी पेरेंट्स को उठाना पड़ता है
इंडिया में डॉक्टर और इंजीनियर का प्रोफेशन इंडियन पेरेंट्स के जहन में इस कदर बसा हुआ है कि बच्चा बड़ा होकर क्या करेगा उससे पहले ही पेरेंट्स अनाउंस कर देते हैं कि भाई मेरा बेटा तो इंजीनियर बनेगा इसके पीछे हिस्टोरिकल रीजंस है
दरअसल देश जब आजाद हुआ था तो गरीबी और बीमारी के चलते लोगों की जिंदगी ज्यादा लंबी नहीं होती थी तो ऐसे में लोगों की जान बचाने वाले डॉक्टर्स को लोग भगवान का दर्जा देते थे तब से लगभग ज्यादातर मां-बाप के मन में डॉक्टर का प्रोफेशन एक हाईली रिस्पेक्ट ड करियर है वहीं 1991 यानी 1991 के इकोनॉमिक लिबरलाइजेशन के बाद जब इंडिया ने ग्रो करना शुरू किया तो अलग-अलग इंडस्ट्रीज में ढेर सारे इंजीनियर्स की डिमांड बढ़नी शुरू हुई
क्योंकि इन दोनों प्रोफेशन मेडिकल और इंजीनियरिंग में जॉब जल्दी ही मिल जाती है स्कोप ज्यादा है और जॉब सिक्योरिटी भी है इसलिए पेरेंट्स अपने बच्चों के लिए इन्हीं दो फील्ड्स को प्रेफरेंस देते हैं और जब किसी स्टूडेंट के पैशन को देखकर उसके दोस्त उसे हिम्मत देते हैं एंकरेज करते हैं कि यार जा तू घर वालों को बोल दे तुझे नाना डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बनना तो बच्चे जवाब देते हैं अब्बा नहीं मानेंगे
लेकिन कभी भी राइटर फिल्म मेकर रेडियो जॉकी ट्रेवल प्लानर यूट्यूब जर्नलिस्ट फूड राइटर या गेम डेवलपर जैसे डिफरेंट करियर की बात ही नहीं होती
अगर करो भी तो बहुत ही कम पेरेंट्स ही अपने बच्चों के सपोर्ट में खड़े होते हैं ज्यादातर बच्चों को डाट दिया जाता है और फोर्सफुली बस दो-चार सुनी सुनाई फील्स चुनने का फरमान सुना दिया जाता है
एक सर्वे में यह बात सामने निकल कर आई है कि 14 से 21 साल के 93 पर
स्टूडेंट्स को सिर्फ सेवन करियर ऑप्शंस के बारे में ही पता है
जैसे इंजीनियरिंग फाइनेंस एंड अकाउंट्स कंप्यूटर एंड आईटी मेडिसिन मैनेजमेंट डिजाइनिंग एंड लॉ जबकि अपने देश में 250 से ज्यादा डिफरेंट टाइप्स के जॉब ऑप्शंस अवेलेबल हैं पर शायद ही हमें स्कूल लेवल से करियर काउंसलिंग की सुविधा मिलती है और जब तक पता चलता है हम काफी आगे निकल गए होते हैं
जहां से वापस आना मुश्किल हो जाता है इंडिया में 315 मिलियन स्टूडेंट्स के लिए 15 लाख काउंसलर्स की की जरूरत है
इंडिया में स्कूल लेवल पर करियर काउंसलिंग की इतनी ज्यादा शॉर्टेज है कि 93% स्कूल्स में प्रोफेशनल काउंसलर्स हैं ही नहीं इसलिए कंपटीशन के अलावा भी करियर चॉइस करते हुए कॉम्प्लेक्टेड में बदलती टेक्नोलॉजीज के चलते एक सही करियर चॉइस करना स्टूडेंट्स और उनके पेरेंट्स दोनों के लिए चैलेंजिंग बन गया है
इंडिया में प्रोफेशनल करियर काउंसलर्स की कमी के चलते अभी जो सो कॉल्ड काउंसलर्स हैं वह एक्चुअली करियर एजेंट्स हैं जो अपना या अपने इंस्टीट्यूट का कोर्स बेचने में लगे रहते हैं तो ऐसे में स्टूडेंट्स का रियल पोटेंशियल कहीं पर खो जाता है यही वजह है कि गलत करियर ऑप्शन चूज करने के चलते आधे रास्ते में बहुत से लोग अपना जॉब क्विट कर देते हैं
अब चलिए सलूशन पर नजर डालते हैं
इंडियन एजुकेशन सिस्टम को सुधारने के लिए कई ऐसे सॉल्यूशंस हैं जिन्हें इमीडिएट अप्लाई करने की जरूरत है जैसे इंडिया ने चंद्रयान 3 को चांद के साउथ पोल पर लैंड करा दिया पर आज भी देश के ज्यादातर हिस्सों में जो एजुकेशन सिस्टम है वह सिर्फ रटना सिखाते हैं
यहां इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के स्कूल ना के बराबर हैं जिन्हें आईबी स्कूल्स यानी इंटरनेशनल बैकल यट कहते हैं इंडिया में सिर्फ 206 आईबी स्कूल्स ही हैं और आईबी स्कूल्स की पढ़ाई सबके पहुंच में नहीं है इसलिए सेंट्रल हो या स्टेट गवर्नमेंट आगे आकर पहल करनी ही होगी और स्कूल्स में कांसेप्चुअल लर्निंग को बढ़ावा देना होगा वैसे आज भी इंडियन स्कूल्स में मार्क्स को ही इंपॉर्टेंस दी जाती है आप कितने अच्छे स्टूडेंट हैं यह आपकी मार्कशीट तय करती है ना कि आप क्या जानते हैं और आपने क्या सीखा है इसीलिए तो थ्री
इडियट्स के गाने गिव मी सम सनशाइन में लिखा गया है 90% लाए तो घड़ी वरना छड़ी हम ये मेंटालिटी बदलनी पड़ेगी स्टूडेंट की काबिलियत को आंकने के लिए 3 घंटे के एग्जाम के बदले बच्चे के क्लासरूम पार्टिसिपेशन प्रोजेक्ट्स कम्युनिकेशन लीडरशिप स्किल्स और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज को बढ़ावा देना होगा हम एक ऐसे एजुकेशन सिस्टम का हिस्सा है जहां साइंस लेने वालों को ही काबिल समझा जाता है जबकि आर्ट्स ह्यूमैनिटीज और कॉमर्स के सब्जेक्ट्स की वैल्यू कम सोची जाती है इसके बदले सभी सब्जेक्ट्स को इक्वल मानकर चलना होगा एक स्टूडेंट की लाइफ में सबसे बड़ा रोल प्ले करते हैं उसकी टीचर्स जिनका हाईली क्वालिफाइड और ट्रेंड होना जरूरी है
क्योंकि देश का भविष्य उन्हें ही संवारना है पर ऐसा हो नहीं रहा एक्सपर्ट्स का मानना है कि स्कूल में ट्रेड टीचर्स की कमी है 60 से 70% टीचिंग स्टाफ खुद वेल ट्रेड नहीं होते हैं फाइनेंशियल ईयर 2023 में टीचर्स ट्रेनिंग पर लगभग . 27 बिलियन खर्च हुए थे
जबकि ो के फाउंडर नारायण मूर्ति जी का मानना है कि इंडिया को टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम पर इयरली न बिलियन डॉलर खर्च करना चाहिए साथ ही वह विदेशों से 10000 रिटायर्ड बेस्ट टीचर्स को भारत बुलवाकर देश के सभी राज्यों और यूनियन टेरिटरीज में 10000 ट्रेन द टीचर्स कॉलेज बनवाने की बात कहते हैं इसके
अलावा अगर इंडियन एजुकेशन सिस्टम को आगे ले जाना है तो लार्ज स्केल पे एजुकेशन में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना होगा कम एज से ही जब बच्चे टेक्नोलॉजी के साथ पढ़ाई करेंगे और उन्हें जानने का मौका मिलेगा तो वह आगे चलकर बेहतर कर पाएंगे और अलग-अलग करियर ऑप्शंस को एक्सप्लोर कर पाएंगे इन फैक्ट जो बच्चा जिस चीज में बेहतर है उसकी एनर्जी उधर ही डायवर्ट करने लायक एजुकेशन सिस्टम की जरूरत है
हालांकि 2019 में जब से कोविड-19 महामारी आई तब से इंडियन एजुकेशन सिस्टम में टेक्नोलॉजी का यूज़ काफी बढ़ा है ऑनलाइन क्लास ऑनलाइन पोर्टल्स स्मार्ट क्लास रूम्स और डिजिटल इंटरेक्शंस बढ़ने से दूर दराज के बच्चों तक भी एजुकेशन की पहुंच होने लगी है जो एक पॉजिटिव साइन ऑफ चेंज है
अब पोस्ट को कंक्लूजन करना जरूरी है कि पेरेंट्स को भी अपनी मेंटालिटी बदलनी होगी
उन्हें यह समझना होगा कि अगर वह अपने बच्चे को जबरदस्ती डॉक्टर या इंजीनियर बनने को भेजेंगे तो बिना इंटरेस्ट के बच्चा अपना फोकस खो देगा पैसे एनर्जी टाइम और एफर्ट सबकी बर्बादी होगी इसलिए इंडियन पेरेंट्स को सपोर्टिव नेचर अपनाते हुए अपने बच्चे को उसकी मर्जी वाले फील्ड को चुनने की पूरी पूरी आजादी देनी होगी स्टूडेंट्स को भी अपने इंटरेस्ट और पसंद वाले अलग-अलग सब्जेक्ट्स और फील्ड को चूज करना होगा ताकि वो भेड़ चाल में ना पड़े और अपने रास्ते पर चलकर अपनी मंजिल को पाएं
क्योंकि रास्ता जितना अलग होगा वहां कंपटीशन उतना ही कम होगा पिकासो कहते थे ऑल चिल्ड्रेंस आर बोर्न आर्टिस्ट इसलिए स्कूल एंड कॉलेजेस को बच्चों की क्रिएटिविटी बढ़ाने पर ध्यान देना होगा
नई एजुकेशन पॉलिसी जब 2020 में आई तब उसमें भी गवर्नमेंट ने जोर देकर कहा कि नई पॉलिसी में बच्चों की क्रिएटिव लर्निंग पर फोकस है और अंत में करियर काउंसलिंग के जरिए बच्चों को कम उम्र में ही सही रास्ता दिखाना होगा
ताकि वह सही रास्ते प जाएं और उन्हें पीछे मुड़कर ना देखना पड़े क्योंकि अक्सर बच्चे जब प्रेशर लेकर पढ़ाई कर रहे होते हैं तो निराश होकर कई बार गलत कदम भी उठा लेते हैं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक अकडम डिस्ट्रेस के चलते 8.2 पर स्टूडेंट्स सुसाइड कर लेते हैं पर इसे रोका जा सकता है इसके लिए जरूरी है
हेल्दी कंपटीशन की सपोर्टिव पेरेंट्स की डेवलपमेंटल एजुकेशन सिस्टम की और अपने पसंद का करियर चूज करने की आजादी की इंडियन एजुकेशन सिस्टम को सुधारने के लिए दो ही चीजों पर फोकस करना सबसे ज्यादा जरूरी है पहला है एजुकेशन और दूसरा है सिस्टम वैसे यह जानकारी आपको कैसी लगी इस जानकारी के के बारे में आपकी क्या राय है हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा प्लस आपके पास भी कोई क्रिएटिव आईडिया है
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