Motivational story – बहाने मत बनाओ | Don’t make excuses
एक बार की बात है, एक आदमी हर रोज़ एक बंजर रेगिस्तान से गुज़रकर अपने घर जाता था। उस इलाके में सिर्फ वही जगह ऐसी थी जहां ज़मीन बिल्कुल सूखी थी, और पानी का कोई नामो-निशान नहीं था। एक दिन, जब वह आदमी जलती हुई धूप में उस रेगिस्तान से गुजर रहा था, उसके मन में गुस्सा उमड़ने लगा। वह मन ही मन सोचने लगा, “यह कितनी बंजर और बदसूरत जगह है, यहां ना तो हरियाली है, ना ही कोई पेड़। ऐसा क्यों होगा? यहां तो पानी तक नहीं है, अगर पानी होता तो कोई यहां पेड़-पौधा ज़रूर लगाता।”
जैसे-जैसे वह तपती रेत में आगे बढ़ता गया, उसका गुस्सा और बढ़ता गया। अंततः उसने आसमान की ओर देखा और चिल्लाकर कहा, “हे ऊपरवाले! तू यहां पानी क्यों नहीं देता? अगर यहां पानी होता तो कोई भी यहां पेड़-पौधा उगा सकता था। तब यह जगह भी सुंदर हो जाती, और जो लोग इस रास्ते से गुजरते, वे यहां आराम कर सकते थे।” यह कहकर वह आदमी आसमान की ओर देखने लगा, मानो ऊपरवाले से किसी उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हो
अचानक, एक चमत्कार हुआ। उसने जैसे ही अपनी नज़र नीचे की, उसे सामने एक बड़ा सा कुआँ दिखा। वह इस इलाके से बरसों से आ-जा रहा था, लेकिन उसे कभी इस जगह पर कुआँ नहीं दिखा था। वह हैरान रह गया और दौड़कर कुएं के पास पहुंचा। कुआँ पानी से लबालब भरा हुआ था। उसने एक बार फिर आसमान की ओर देखा, लेकिन इस बार शुक्रिया अदा करने के बजाय कहा, “पानी तो ठीक है, लेकिन यहां पेड़ लगाने के लिए बीज चाहिए होंगे।” तभी उसकी नज़र कुएं के पास रखी एक बोरी पर पड़ी, जो बीजों से भरी हुई थी।
उसकी आंखें फिर से विस्मय से फैल गईं। लेकिन अब वह कुछ असमंजस में था। उसने आसमान की ओर देखते हुए घबराते हुए कहा, “लेकिन यह जगह तो सूखी है, यहां पेड़ कैसे उगेंगे?” तभी उसे महसूस हुआ कि धीरे-धीरे ज़मीन नम होने लगी थी। अब वह आदमी और भी ज़्यादा घबरा गया। उसे लगने लगा कि कहीं ऊपरवाला उसे इस बंजर रेगिस्तान में पेड़-पौधे लगाने का काम ना सौंप दे। इस डर से वह बिना पीछे देखे तेज़ कदमों से आगे बढ़ने लगा।
अभी उसने कुछ ही कदम आगे बढ़ाए थे कि अचानक एक कागज़ का टुकड़ा उड़ता हुआ उसके चेहरे से आकर चिपक गया। उस कागज़ पर लिखा था, “मैंने तुम्हें पानी दिया, बीज दिए, सूखी ज़मीन को गीला कर दिया। अब तुम्हारे पास वो सबकुछ है, जो इस रेगिस्तान को हरा-भरा करने के लिए चाहिए। अब यह तुम्हारे हाथ में है। अगर तुम चाहो तो यहाँ से गुजरने वाले लोगों के लिए पेड़-पौधे लगा सकते हो।“
आदमी ने एक पल के लिए सोचा और पीछे मुड़कर देखा। लेकिन फिर उसने कागज़ को फेंक दिया और आगे बढ़ गया। नतीजतन, वह रेगिस्तान कभी हरा-भरा नहीं हो सका।
दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि कई बार हम अपने हालातों का दोष दूसरों पर डालते हैं। हम सोचते हैं कि अगर कुछ परिस्थितियाँ अलग होतीं, तो हम ज़रूर कुछ कर सकते थे। लेकिन हम यह नहीं सोचते कि वह “कोई” हम खुद भी हो सकते हैं। अंत में, हम बहाने बनाने लगते हैं कि हमारे पास वह साधन नहीं है, जो हमें चाहिए। लेकिन सच्चाई यह है कि अगर हम चाहें, तो हमारे पास वह सबकुछ है जो किसी बड़े काम को अंजाम देने के लिए चाहिए। बस हमें अपनी सोच को बदलने की जरूरत है।
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