पिछले जन्म की बाते याद क्यों नहीं रहती | Why We Don’t Remember Anything In The Past Life

पिछले जन्म की बाते याद क्यों नहीं रहती | Why We Don’t Remember Anything In The Past Life

 

पुनर्जन्म का विचार मानव सभ्यता के सबसे रहस्यमय और चर्चित विषयों में से एक है। यह न केवल हमारे धर्मग्रंथों का हिस्सा है, बल्कि हमारे जीवन और मृत्यु की प्रक्रिया के बारे में गहन चिंतन का भी प्रतीक है। आज हम इस लेख के माध्यम से समझेंगे कि पुनर्जन्म क्या है और क्यों हमें अपने पिछले जन्म की स्मृतियां याद नहीं रहतीं।

 

पुनर्जन्म: एक संक्षिप्त परिचय

पुनर्जन्म का अर्थ है कि आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में जन्म लेती है। यह विचार हमारे धार्मिक शास्त्रों और पुराणों में गहराई से वर्णित किया गया है। श्रीमद्भगवद् गीता के अनुसार, आत्मा अजर-अमर है, जबकि शरीर नाशवान है। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान अर्जुन को यह बताया था कि आत्मा कभी नहीं मरती, केवल शरीर ही नष्ट होता है। उन्होंने यह भी कहा कि जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है।

 

पुनर्जन्म की अवधारणा धार्मिक दृष्टिकोण से

धार्मिक ग्रंथों में पुनर्जन्म की अवधारणा को गहराई से समझाया गया है। श्रीमद्भगवद पुराण में उल्लेख किया गया है कि आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में जाना प्रकृति का नियम है। यह आत्मा का सफर तब तक जारी रहता है जब तक वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती। कर्म और पुनर्जन्म के बीच का यह संबंध आत्मा के अगले जीवन को निर्धारित करता है। जैसे आपके कर्म होंगे, वैसे ही आपका अगला जन्म होगा। यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक कि आत्मा परमात्मा में विलीन नहीं हो जाती।

 

कर्म और पुनर्जन्म का गहरा संबंध

हमारा जीवन और कर्म आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। जैसा कि भारतीय दर्शन में कहा गया है, कर्म का फल आपको इसी जीवन में या अगले जन्म में अवश्य भोगना पड़ता है। यही कारण है कि पुनर्जन्म की अवधारणा में कर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। अच्छे कर्म करने से आत्मा को अगला जन्म सुखद मिलता है, जबकि बुरे कर्मों का परिणाम नकारात्मक होता है। यह जन्म और मृत्यु का चक्र तब तक चलता रहता है जब तक आत्मा अपने सारे कर्मों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती।

 

क्यों हमें अपने पिछले जन्म की स्मृतियां याद नहीं रहतीं?

यह प्रश्न लगभग हर किसी के मन में आता है—यदि पुनर्जन्म सच है, तो हमें अपने पिछले जन्म की स्मृतियां क्यों नहीं रहतीं? इस विषय में पुराणों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि आत्मा जब नया शरीर धारण करती है, तो उसे अपने पिछले जन्म की सभी स्मृतियों को भूलना पड़ता है।

 

श्रीमद्भगवद पुराण के अनुसार, जब शिशु अपनी मां के गर्भ में होता है, तब उसे अपने पिछले जन्म की स्मृतियां होती हैं। लेकिन गर्भ के भीतर की पीड़ा और जन्म के समय होने वाली अत्यधिक शारीरिक वेदना के कारण यह सभी स्मृतियां मिट जाती हैं। इसी कारण जब शिशु जन्म लेता है, तो वह अपने पिछले जीवन की यादों से मुक्त होकर रोने लगता है।

 

कपाल क्रिया और स्मृतियों का नष्ट होना

पुराणों में एक और महत्वपूर्ण बात का उल्लेख है—दाह संस्कार के समय की जाने वाली कपाल क्रिया। इस क्रिया के अंतर्गत मृतक के कपाल (सिर) पर बांस के डंडे से मारा जाता है। यह क्रिया इस उद्देश्य से की जाती है कि आत्मा अपनी पिछली स्मृतियों को त्याग सके और आगे की यात्रा के लिए तैयार हो सके। इस क्रिया के माध्यम से आत्मा अपने मोह और बंधनों से मुक्त हो जाती है और अगले जीवन की ओर अग्रसर होती है।

 

आत्मा की यात्रा: मृत्यु से अगला जन्म

जब आत्मा शरीर छोड़ती है, तो वह एक नई यात्रा पर निकलती है। यह यात्रा भौतिक शरीर के बिना भी जारी रहती है। इस दौरान आत्मा के पास दो चीजें बचती हैं—मन और सूक्ष्म शरीर। मन में आत्मा के पिछले अनुभव, बुद्धि और स्मृतियां संग्रहीत रहती हैं। हालांकि, नए जन्म के समय इन स्मृतियों को पुनः सक्रिय नहीं किया जाता है, क्योंकि आत्मा को जीवन के नए अनुभवों का सामना करना होता है।

 

कभी-कभी यह आत्मा पितृ लोक, भूत लोक या देवलोक में पहुंच जाती है, जहां वह अगला जन्म मिलने की प्रतीक्षा करती है। आत्मा को फिर से धरती पर लौटना होता है और यह लौटने की प्रक्रिया उसके कर्मों पर आधारित होती है। किस प्रकार की योनि में आत्मा जन्म लेगी—मानव, पशु, पक्षी, या अन्य जीव—यह उसके पिछले कर्मों और विचारों पर निर्भर करता है।

 

मृत्यु और जीवन का अंतहीन चक्र

जन्म और मृत्यु का चक्र निरंतर चलता रहता है। यह एक अंतहीन चक्र है जो तब तक चलता है जब तक आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती। मोक्ष प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अपने कर्मों से मुक्त होना पड़ता है। जब तक आत्मा अपने कर्मों के परिणामों से मुक्त नहीं होती, तब तक उसे नए शरीर में जन्म लेना पड़ता है और इस संसार में पुनः प्रवेश करना पड़ता है।

 

पुनर्जन्म की वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्याख्या

धार्मिक दृष्टिकोण के अलावा, पुनर्जन्म के विचार को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखा गया है। कई वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि पुनर्जन्म की अवधारणा मानसिक प्रक्रिया का हिस्सा हो सकती है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि पिछले जीवन की स्मृतियां अवचेतन मन में संरक्षित रहती हैं और कुछ विशेष परिस्थितियों में यह स्मृतियां उभर सकती हैं। हालांकि, इस दृष्टिकोण पर अभी भी शोध चल रहा है और यह पूरी तरह से सिद्ध नहीं हो पाया है।

 

पुनर्जन्म और आत्मज्ञान की ओर यात्रा

पुनर्जन्म की प्रक्रिया आत्मा की यात्रा का एक हिस्सा है। इस यात्रा का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना होता है, जो कि आत्मा और परमात्मा के मिलन से होता है। इस मोक्ष को प्राप्त करने के लिए हमें अपने जीवन में अच्छे कर्म करने होंगे और सांसारिक मोह-माया से मुक्त होना होगा। जब आत्मा अपने सारे कर्मों से मुक्त हो जाती है, तब वह परमात्मा में लीन हो जाती है और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाती है।

 

निष्कर्ष

पुनर्जन्म का विचार हमारे जीवन और मृत्यु के रहस्यों को समझने का एक प्रयास है। यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि जीवन के गहरे अर्थों को भी उजागर करता है। पुनर्जन्म की अवधारणा हमें सिखाती है कि हमारे कर्म हमारे अगले जीवन को निर्धारित करते हैं, और हमें इस जीवन में अच्छे कर्म करके आत्मा की उन्नति की दिशा में काम करना चाहिए।

 

मनुष्य के लिए यह समझना आवश्यक है कि जीवन और मृत्यु केवल भौतिक शरीर तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आत्मा की यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हमें अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और इस संसार में अच्छे कार्य करके मोक्ष प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

 

 

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