भारत की रहस्यमय मम्मी जिसे देख वैज्ञानिक भी रह गए दंग। THE STORY OF INDIA’S MYSTERIOUS MUMMY.
एक ऐसी रहस्यमई मम्मी जो पिछले 550 सालों से है जिंदा आज भी इस मम्मी के बढ़ रहे हैं नाखून और बाल स्किन और दांत भी हैं अच्छी कंडीशन में बिना किसी प्रिजर्वेटिव के रखी गई है यह मम्मी इस मम्मी को लगती है चोट और निकलता है खून दुनिया की इकलौती ऐसी मम्मी जो लेटी नहीं बल्कि बैठी हुई है वो भी बिना किसी सपोर्ट के आखिर क्या है इस मम्मी का राज कहां देखी जा सकती है यह मम्मी
दोस्तों मम्मी का नाम सुनते ही हमारा दिमाग सबसे पहले मिश्र के पिरामिड्स तक दौड़ जाता है लेकिन आज हम जिस मम्मी की बात कर रहे हैं वह मिस्र में नहीं बल्कि हमारे देश भारत में ही मौजूद है भारत में मम्मी होने की बात पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है
लेकिन यह रहस्यम मम्मी हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति वैली में स्थित है आखिर किसकी है यह मम्मी और इस मम्मी के साथ कौन-कौन से राज जुड़े हुए हैं जानने के लिए पोस्ट में अंत तक बने रहिएगा
दोस्तों हिमाचल प्रदेश में स्पीति वैली एक बहुत ही खूबसूरत जगह है साल में 8 से 10 महीने यहां पर बर्फ की मोटी चादर बिची रहती है यह यह जगह हर साल लाखों सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती है इस घाटी से करीब 50 किमी की दूरी पर गुई नाम का एक गांव है जहां पर बौद्ध मोनेस्ट्री बनी हुई है इस मोनेस्ट्री में एक कांच का केबिन है जिसके अंदर एक मम्मी रखी हुई है इस मम्मी को लोग साक्षात भगवान मानते हैं आसपास के लोग इस मम्मी की रोजाना पूजा उपासना करते हैं
दूर-दूर से लोग इस मम्मी को देखने के लिए भी आते हैं जो भी यह मम्मी देखता है बस देखता ही रह जाता है इस मम्मी का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है साल 1975 स तक यह मम्मी एक स्तूप में रखी गई थी इस साल स्पीति वैली और हिमाचल प्रदेश के अन्य कई जिलों में भयानक भूकंप भी आया था जिसमें दर्जनों लोगों की जान चली गई थी उस भूकंप के कारण यह मम्मी भी जमीन में दफन हो गई थी
करीब 21 सालों तक इस मम्मी के बारे में कोई भी सुराख नहीं मिल पाया धीरे-धीरे लोग इस मम्मी के बारे में भूलने लग गए थे लेकिन साल 1995 में इंडो तिब्बत पुलिस फोर्स ने इस मम्मी को फिर से ढूंढ निकाला
यह जगह भारत चीन और तिब्बत के बॉर्डर से काफी नजदीक है इमरजेंसी सिचुएशन में यहां आसानी से पहुंचा जा सके इसके लिए साल 1995 में आईटीबीपी के जवानों द्वारा सड़क बनाने का कार्य किया गया था खुदाई के दौरान एक शख्स ने जब जमीन पर कुदाल मारी तो अचानक वहां से कुछ खून बहता हुआ नजर आया वह शख्स खून देखकर हैरान रह गया सभी जवानों ने मिलकर जमीन में से उस बॉडी को निकाला वो बॉडी पूरी तरह से सूखी हुई थी
ऐसे में उसके अंदर से खून कैसे निकला इस बारे में आज तक किसी को कुछ भी पता नहीं है सेना के जवानों को वो मम्मी काफी पसंद आई और उस मम्मी को वो अपने साथ आईटीबीपी के कैंपस में ले आए साल 2004 तक यह मम्मी इस कैंपस में ही रही इसके बाद जब स्पीति वैली और आसपास के लोगों को इस मम्मी के बारे में पता चला तो सभी लोग सेना के ऑफिस में पहुंचे उन लोगों ने बताया कि यह एक बौद्ध मौंग का शरीर है जो ध्यान अवस्था में बैठे हुए हैं
गोई गांव वालों ने उस शख्स को अपना देवता बनाया और पूरी कहानी विस्तार से समझाई इसके बाद आईटीबीपी ने फैसला किया कि वह यह मम्मी गुई गांव वालों को सौंप देंगे गुई में एक मोनेस्ट्री का निर्माण कराया गया और 2009 में इस मम्मी को एक शीशे के बक्से में बंद करके रख दिया गया इस दौरान लोगों ने देखा कि मम्मी के नाखून और बालों का आकार लगातार बढ़ता जा रहा है
मम्मी के दांत भी बहुत अच्छी कंडीशन में है साथ ही इतने सालों में मम्मी की स्किन भी बहुत ही ज्यादा खराब नहीं हुई थी पेंसिल्वेनिया के एक साइंटिस्ट ने जब इस मम्मी के बारे में सुना तो उन्हें इस मम्मी के बारे में और बातें जानने की इच्छा पैदा हुई वो रिसर्च के लिए भारत आए और अपनी रिपोर्ट में उन्होंने बताया कि यह मम्मी 550 साल पुरानी है हैरानी की बात यह थी कि मिश्र में जितनी भी मम्मी रखी जाती थी उन पर एक विशेष प्रकार का लेप लगाया जाता था जिससे कि वह जल्दी डीकंपोज ना हो जाए
लेकिन स्पीति वैली में मिली मम्मी पर ना तो कोई लेप था और ना ही कोई प्रिजर्वेटिव इसमें यूज किया गया था साइंटिस्ट ने बताया कि यह मम्मी सेल्फ ममीफिकेशन का एक बेस्ट एग्जांपल है सेल्फ ममीफिकेशन की टर्म आपने शायद पहली बार सुनी होगी असल में तिब्बत और जापान में बहुत से मंक इस प्रक्रिया को अपनाते हैं वह अपनी बॉडी को खुद ही मम्मी में कन्वर्ट कर लेते हैं और इसके लिए कई दिन पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती है 11थ सेंचुरी से 20th सेंचुरी तक करीब 20 बौद्ध मंक इस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक कर पाए थे
बताया जाता है कि 15वीं शताब्दी में ंघा तेंज नाम के एक बौद्ध साधु तिब्बत से स्पीति वैली आए थे उस समय गांव में प्लेग नाम की भयंकर बीमारी फैली हुई थी साथ ही पूरे गांव में बिछु ने भी आतंक मचा रखा था गांव के लोगों को आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए ंघा टजन ध्यान मुद्रा में बैठ गए और तपस्या में लीन हो गए स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि जिस दिन शंगा की बॉडी से प्राण निकले थे
उसके अगले ही दिन गांव में बिना बारिश के एक रेनबो नजर आया था और गांव से बिच्छू का आतंक और बीमारी भी गायब हो गए थे जब ंघा की बॉडी से आत्मा निकली तो उस समय उनकी उम्र 45 साल रही होगी ंघा टेंज ने जिस सेल्फ ममीफिकेशन प्रक्रिया को अपनाया था उसके बारे में भी आपको बता देते हैं
इसमें साधु कई दिन पहले ही अपनी डाइट पर कंट्रोल करना शुरू कर देते हैं वो गेहूं चावल दाल जिसमें फाइबर अधिक होता है इन सभी चीजों से दूरी बनाना शु शुरू कर देते हैं हर्ब्स रूट्स नट्स सीड्स और बेरी जैसी चीजों को अपनी डाइट में शामिल करते हैं धीरे-धीरे उनकी बॉडी सूखने लगती है वो अपनी भूख को कम करने लगते हैं एक प्रकार का पॉइजन भी वो लोग लेते हैं जिससे कि बॉडी के अंदर मौजूद फ्लड बाहर आ जाए और उनकी बॉडी जल्दी जल्दी डीकंपोज ना हो जब उन्हें लगता है कि उनकी मौत निकट है तो वह खुद को एक बॉक्स में बंद कर लेते हैं
बॉक्स के आसपास मोमबत्ती जला दी जाती है जिससे व्यक्ति की स्किन ड्राई हो जाए और उसकी बॉडी में मौजूद लिक्विड सूख जाए बॉक्स में एक पाइप होता है और बेल होती है पाइप की मदद से साधु सांस ले सकता है और रोजाना दिन में एक बार बेल बजाकर व यह बताता है कि वो अभी जिंदा है जिस दिन बेल नहीं बचती उस दिन मान लिया जाता है कि उस शख्स में अब प्राण नहीं बचे हैं
करीब 1000 दिनों के लिए बॉक्स को अच्छी तरह से सील कर दिया जाता है 1000 दिनों के बाद बॉक्स से बॉडी को बाहर निकाला जाता है और वो बॉडी अब तक एक मम्मी का रूप ले चुकी होती है इस मम्मी को अब एक ट्रांसपेरेंट बॉक्स या शीशे के बॉक्स में रखा जाता है और लोग उन्हें एक देवता के रूप में पूजना शुरू कर देते हैं गुई गांव के लोगों का मानना है कि ंघा टेंज ने ही उनके गांव को महामारी और बिच्छू के प्रकोप से बचाया था इसलिए उनके मन में शांघर प्रति श्रद्धा और समर्पण भाव है
यह दुनिया की इकलौती ऐसी मम्मी है जो बैठी हुई अवस्था में है मम्मी के एक हाथ की मुट्ठी बंद है और वह हाथ पैर पर रखा हुआ है मम्मी का मुंह घुटने पर रखा हुआ है स्थानीय लोग इस मम्मी को जीवित भगवान कहते हैं यह मम्मी बिना किसी लेप के सुरक्षित कैसे है यह सवाल आज भी वैज्ञानिकों को और सर्चर्स को परेशान कर रहा है
इसके अलावा सेना के जवान का फावड़ा जब इस मम्मी पर लगा था तो खून कैसे निकला यह बात भी रहस्य बनी हुई है
क्योंकि साइंटिफिकली 550 साल पुरानी मम्मी से खून निकलना पॉसिबल नहीं है आज के समय में कोई भी सेल्फ ममीफिकेशन की प्रैक्टिस नहीं कर सकता क्योंकि जापान ने साल तक पहुंचना भी आसान नहीं है बहुत खराब और संकीर्ण रास्तों को पार करके इस गांव पर पहुंचा जा सकता है
तो दोस्तों यह थी भारत के रहस्यमय मम्मी ंघा तंजिन की कहानी उम्मीद करते हैं आपको हमारी आज की पोस्ट पसंद आई होगी दोस्तों आप इस तरह के ममीफिकेशन और बौद्ध साधुओं के बारे में क्या कहना चाहेंगे नीचे कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं और अगर इस पोस्ट से आपको कुछ नया जानने या सीखने को मिला या फिर इंटरेस्टिंग लगा तो प्लीज इस पोस्ट को एक लाइक करके अपने फ्रेंड्स और फैमिली में से जरूर शेयर करें
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